आदमी सोचता है की ऐसा हो
आदमी सोचता है की ऐसा हो दिल चाहता है जो वैसा हो गरीबी कोई गुनाह तो नहीं पर जैसा हो पास पैसा हो आईने में चेहरा देखने से पहले बदसूरत भी चाहे साफ शीशा हो महलो में भी सुकूँ मिलता नहीं आशियां हो भी तो कैसा हो साग़र में रह के देखता है आसमां कहीं ऐसा तो नहीं वो प्यासा हो