तआरूफ़
तआरूफ़ ---------------------------------- मैं जीता जागता एक बुत चलता फिरता , एक पत्थर मैं महसूर हूँ हवाओं से , मैं परिंदा फड़फड़ाता ज़ीस्त के पिंजरे में गुहार लगाता सबसे आज़ादी की , संवेदनाओं के जज़ीरे पे चुपचाप खड़ा महसूस करता हूँ जन्नत का सुख, दोजख का दुःख , सदियों से धुआँ -धुआँ आकार को तरसता तहलील हूँ हवाओं में , मैं आब की एक बून्द सीप को तरसता गौहर होने के लिए , सूखता जा रहा ह