तआरूफ़
तआरूफ़
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मैं जीता जागता
एक बुत
चलता फिरता , एक पत्थर
मैं महसूर हूँ हवाओं से ,
मैं परिंदा फड़फड़ाता
ज़ीस्त के पिंजरे में
गुहार लगाता सबसे
आज़ादी की ,
संवेदनाओं के जज़ीरे पे
चुपचाप खड़ा
महसूस करता हूँ
जन्नत का सुख, दोजख का दुःख ,
सदियों से धुआँ -धुआँ
आकार को तरसता
तहलील हूँ हवाओं में ,
मैं आब की एक बून्द
सीप को तरसता
गौहर होने के लिए ,
सूखता जा रहा हूँ
उम्र की धूप से ,
और क्या कहूँ
काफ़ी है इतना
मेरा तआरूफ़
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मैं जीता जागता
एक बुत
चलता फिरता , एक पत्थर
मैं महसूर हूँ हवाओं से ,
मैं परिंदा फड़फड़ाता
ज़ीस्त के पिंजरे में
गुहार लगाता सबसे
आज़ादी की ,
संवेदनाओं के जज़ीरे पे
चुपचाप खड़ा
महसूस करता हूँ
जन्नत का सुख, दोजख का दुःख ,
सदियों से धुआँ -धुआँ
आकार को तरसता
तहलील हूँ हवाओं में ,
मैं आब की एक बून्द
सीप को तरसता
गौहर होने के लिए ,
सूखता जा रहा हूँ
उम्र की धूप से ,
और क्या कहूँ
काफ़ी है इतना
मेरा तआरूफ़
good
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